यह विश्वास मुझे है — 
एक दिवस तुम 
मेरी प्यासी आँखों के सम्मुख 
मधु-घट लेकर आओगी! 
बदली बनकर छाओगी!  
दरवाज़े को 
गोरे-गोरे दर्पन-से हाथों से 
खोल खड़ी हो जाओगी! 
भोले लाल कपोलों पर 
लज्जा के रँग भर-भर लाओगी! 
नयनों की अनबोली भाषा में 
जाने क्या-क्या कह जाओगी!  
ज्यों चंदा को देख 
चकोर विहँसने लगता है, 
ज्यों ऊषा के आने पर 
कमलों का दल खिलने लगता है, 
वैसे ही देख तुम्हें कोई 
चंचल हो जाएगा! 
बीते मीठे सपनों की 
दुनिया में खो जाएगा!  
फिर इंगित से पास बुलाएगा, 
धीरे से पूछेगा — 
‘कैसी हो, 
कब आयीं?
तुम क्या उत्तर दोगी?  
शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी 
आँखों पर आँचल धर लोगी!