यह विश्व एक है रंगमंच
मानव इसमें अभिनेता है।
चाहे हो विजयी या कि विजित
कर पाठ अदा चल देता है।
है मंच भले खाली रहता
नेपथ्य न खाली रहता है,
अभिनय संचालक सूत्रधार
वह चुपके सबकुछ करता है।
है एक कभी उठता परदा
है एक कभी गिरता परदा,
उठने गिरने का क्रम जारी
यों खेल मनोहर चलता रहता।
जीवन नाटक चलता रहता
संहार-सृजन पलता रहता,
वह भी तो है अभिनेता ही
जो दर्शक बन रस लेता है।
तब व्यर्थ पराजय कि भय है
तब व्यर्थ विजय की तृष्णा है,
इससे जगमग आलोक सदा
रजनी शुक्ला या कृष्णा है।