Last modified on 21 जुलाई 2016, at 11:17

विष्णु विनय / शब्द प्रकाश / धरनीदास

संकट पेरते प्रह्लाद सुमिरन करो, धरि नरसिंह रूप भक्त को बचायो है।
जाति पति द्रौपदी श्रवन हरि ढेरि कीन्ह्यो, अंवर अँबूह लाओ अन्तहू न पायो है॥
ग्राह के ग्रसत गजराज काज महाराज, उरमँ अँकूर होत दूरही ते धायो है।
धरनी पुकार वार वार काँध रखवार, मेरि वार दीनवन्धु वार कहाँ लायो है॥35॥