आइ अभिनन्दनक चन्दन चढ़यबा लय जा रहल छी
अपन ठाकुरकेँ पुजय बिसपीक डीह सजा रहल छी
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आइ विश्वेश्वरी मंदिर खंडहर मंडित कर’क अछि
आइ घर अइपन गोसाउनिकेँ सजग पूजित कर’क अछि
प्रथित गजरथपुरक पथकेँ करब स्वच्छ बहारि निर्मल
रसिक शिवसिंहक सखाकेँ पुनि करब स्वागत प्रणय-जल।।1।।
आइ तिरहुन गाटि ओ कमला बलानिक पानि कलकल
हिमवतक बन सुरसरिक तट अवधि कनकन मचल हलचल
अइ रजा रंक पंडित गृहथ श्रमिक समान मानिअ
जाति पाँतिक भेदभावहु उपर मैथिल गणित जानिअ।।2।।
एकरस भय, देश-कोशक भावना लय वलित आशा
चलव पूजन करय नागर - मनोमोहिनि अपन भाषा
अपन भाषा अमर संस्कृत-कल्पतरु केर शिखर शाखा
मध्य युगहुक हट्ट अवहट्टक महामणि खचित पाखा।।3।।
ललित प्राकृत पारिजातक पल्लवित सुरभित सुरोचित
वयन देसिल मधुर, जन जन - पदक बिच जे युगहु योजित
तकर हीरक हार लय कवि - कठहारक करब पूजन
शरदऋतुअहुमे मधुक आवाहनी कोकिलक कूजन।।4।।
आइ अपन पियारा मेटबय सलिल शीतल ताकि रहलहुँ
जीवनक पथ आतपित कत छाँह तरुतल झाँकि रहलहुँ
अपन घर - आङनक उगना हटलि संगहि चलित-चपित
पुनि कोना आओत जुड़वय, युगयुगहु दृग आँकि रहलहुँ।।5।।
आइ हम चललहुँ भवानीपुरक पथ कत मनोरथ चढ़ि
उग्रनाथक साधना हित पहुँचि रस पाबय अमृत बढ़ि
हमर उगना कतय गेला! पुछब गौरीकेँ करुण धुनि
हम बजायब अपन उदनाकेँ सुनाबस गींत धुनि गुनि।।6।।
आइ हम चलवे चढ़ावय चौमथक विद्यापतिक मठ
जतय राखलि जननि जाह्नवि भक्तपुत्रक प्रेममय हठ
गाबि हम सब भरित कंठे - पाओल बड़ सुखसार तीरे
करुण राग अलापबे - छोड़इत बहय पुनि नयन नीरे।।7।।
हम चढ़ाबय अछिंजल गंगाजली भरि कविक नामे
सुमन अंजलि समर्पण हित तिरहुतिक धुनि गाम गामे
आइ सुनबय जा रहल छी अपन धुनिक महेशवानी
अंग-वंगहु मगध - अवधहु असम उत्कल वन - वनानी।।8।।
नाट्य धुनि नव नचारी वा लचारीहुक राग - रागिनि
भारतक इतिहास शाही गली दिल्ली राजधानी
आइ विद्यापति न तिरहुत मात्र मैथिल रूप परिचित
भव्य भारत ऋतुसीमा टपि बनल छथि विश्व पूजित।।9।।
आइ रसिया विपिन बसिया बजा रहला मधुर बँसिया
व्याप्त - मिथिला पदावलि बरतानिया अमरिका रसिया
आइ हम ओहि विश्वक विकेर कवित रसकेँ पुजय चललहुँ
अपनभाषा, अपन भूषा अपन स्वर-धुनि गुनय चललहुँ।।10।।
आइ नहि क्यो दाबि सकते हमर युग-युग भाव-भाषा
आइ नहि क्यो जाबि सकते मुहक बोली हृदय-आशा
आइ विद्यापति वरन हित स्वयं विद्या छथि समर्पित
आइ विष पिंवि नीलकंठ कविक अमृत सुरसरि प्रवाहित।।11।।
आइ विसपीडीह पर लोरिक सङहि सलहेश जाग्रत
दिना-भद्री दीन-दलितक देवताहुक भव्य स्वागत
आइ सब मिलि कय दयालोसिंहकेँ जगबा रहल छी
माम-गहबर डीह जे जत सबहुकेँ सजबा रहल छी।।12।।
प्राणपूरक प्रेरणा लय, जन-जनक चित चेतना दय
गमइ-गामक वेदना, संवेदना पुर-परिसरक लय-
कविक अभिनन्दनक क्रममे, स्वाधिकारक अतिक्रममे
देश-भाषा ज्योति जगबय राष्ट्रहित योजना क्रममे-
कविक पूजन-पर्व आत्मिक गर्ब जगबय जा रहल छी
अपन ठाकुरकेँ पुजय विस्पीक डीह सजा रहल छी।।13।।