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विस्तार / ऋषभ देव शर्मा

देखो!
मेरा समर्पण
और तुम्हारी स्वीकृति,
तुम्हारा समर्पण
और मेरी स्वीकृति,
बस,
सारी दुनिया
इतने में ही सिमट गयी है|
मैं
इस एक क्षण में सिमटे हुए
अनादी अनंत
समय के विस्तार को
नहीं संभाल पा रह हूँ
मेरे देवता!