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विस्मृत आवास / असद ज़ैदी

टूटी फूटी उजाड़ बन्द अकेली कुटिया
खुलो ! मेहमानों को पानी दो
तुम्हारा सुस्त निवासी देखो आया है
बोलो कितने दिनों से बन्द हो, माँ कहाँ है ?
खुलो एक अच्छी ख़बर की तरह
नहीं तो एक बुरी ख़बर ही की तरह सही
अचानक गले लिपट कर शर्मिन्दा कर दो मुझे ।
कि जहाँ मेरी यादें समाप्त होती हैं माँ रहती होगी
और जहाँ मैं गेंद की तरह उछलता हूँ बचपन में
अब सूखी हवा चलती होगी
कुटिया बनो ऎसी सज़ा जैसी माँ ने नहीं दी
हमें क़ैद कर लो यहाँ कि दीख पड़े अचानक हमें आसमान ।