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वीरान लंका / नवीन ठाकुर ‘संधि’

पहिलेॅ जरलै रावण के शान,
तबेॅ होलै लंका जरी वीरान।

नै छेलै राम केॅ लोभ राजपाट रोॅ,
नै छेलै लोभ रास्ता बाट रोॅ।
छेलै लोभ सत्यशील सीता रोॅ,
नै छेलै लोभ जमीन जगह साम्राज्य रोॅ।
मतुर लड़ी-झगड़ी केॅ बनलै एक पुराण,
पहिलेॅ जरलै रावण के शान।

रावण पंडित ज्ञानी बनलै अज्ञानी,
समय देलकै दुन्हू में झगड़ा ठानी।
समझाय थकलै मंदोदरी रानी,
शायद! लंकेशें नै बुझलकै युद्धों के हानि।
मान-सम्मान पैलकै जटायु-हनुमान,
पहिलेॅ जरलै रावण के शान।

जब तलक धरती रहतै, तबतक रहतै,
कहै "संधि" कहाँ लियेॅ सकलै कोय केकरोॅ हिस्सा।
राम-राम के गुणधर्म बढ़लै, बढ़लै जिनगी जियै के आशा,
हानिलाभ जीवन मरण के मंतर बनलै हनुमान चालीसा।
जीव चराचर के "संधि" पुरलै बड़ा निनान,
पहिलेॅ जरलै रावण के शान।