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वीर-बहू / अज्ञेय

एक दिन देवदारु-वन बीच छनी हुई
किरणों के जाल में से साथ तेरे घूमा था।
फेनिल प्रपात पर छाये इन्द्र-धनु की
फुहार तले मोर-सा प्रमत्त-मन झूमा था
बालुका में अँकी-सी रहस्यमयी वीर-बहू
पूछती है रव-हीन मखमली स्वर से :
याद है क्या, ओट में बुरूँस की प्रथम बार
धन मेरे, मैं ने जब ओठ तेरा चूमा था?

शिलङ्, मार्च, 1944