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वे आत्‍माजीवी थे काया से कहीं परे / हरिवंशराय बच्चन


वे आत्‍माजीवी थे काया से कहीं परे,

वे गोली खाकर और जी उठे, नहीं मरे,

जब तक तन से चढ़काचिता हो गया राख-घूर,
तब से आत्‍मा
की और महत्‍ता
जना गए।


उनके जीवन में था ऐसा जादू का रस,

कर लेते थे वे कोटि-कोटि को अपने बस,

उनका प्रभाव हो नहीं सकेगा कभी दूर,
जाते-जाते
बलि-रक्‍त-सुरा
वे छना गए।


यह झूठ कि, माता, तेरा आज सुहाग लुटा,

यह झूठ कि तेरे माथे का सिंदूर छुटा,

अपने माणिक लोहू से तेरी माँग पूर
वे अचल सुहागिन
तुझे अभागिन,
बना गए।