जो एक असहाय की मौत पर
रुकते नहीं
अखबार पलट देते हैं
लोगों की बस्तियां जलाये जाने पर
उफ नहीं करते!
कौन हैं वे
जो धान की मारी फ़सल देखकर कहते हैं हंसते हुए...
ऐसा ही होना था
वे कौन हैं
जिनकी सबसे ज्यादा दिलचस्पी
बलात्कृत स्त्रियों में है
जो लूट की खबरों को
ध्यान से पढ़ते हैं
कौन हैं वे
जो ग्वाले के दूध का कनस्तर
खुली सड़क पर पलट देते हैं
वे कौन हैं
जो तय करते हैं
शहर के संविधान
पुलिस की गाड़ियां, मारे खौफ़ के
ससम्मान जिनके दरवाज़े पर रुकती हैं
ज़ाहिर है वे किसी दूसरे लोक के नहीं हैं
ज़ाहिर है वे समुद्र की अतल गहराइयों से नहीं निकले हैं
वे हमारी मुर्दा सहनशीलता से पैदा हुए लोग हैं
वे हमारी पराजित आस्थाओं की उपज हैं
उपज हैं हमारी प्रायोजित विनम्रता के
हमारी लक्ष्यहीन नपुंसक क्रांति की उपज हैं।