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वे तो फिर आएँगे / अज्ञेय

लेकिन वे तो फिर आएँगे
फिर रौंदे जाएँगे खेत
ऊसरों में फिर झूमेंगे
बिस खोपड़े, सँपोले
स्मृतियाँ बनी हुई हैं, हाँ,
पर भोगी थी यातना जिन्होंने
वे तो चले गये हैं।
स्मृति भी है यातना-या कि हो सकती है-पर
जिनके पास रह गयी उनको
सिवा हाँकने, दुहने
या कि बलि दे कर खाने के
और कुछ नहीं आता
बकरी, बछड़े, मृगछौने हों
या-मनुष्य हों यन्त्रों से वे
खा सकते हैं नगर।
वे फिर आएँगे : सुन्दर होंगे
सुन्दर यानों पर सवार दीखेंगे
दस हाथ उनके संवेदन भरी उँगलियों से
कर सकते होंगे सौ सौ करतब
पर जबड़ों से उनके टपक रहा होगा
जो सर्प-रक्त वह जहाँ गिरेगा
मट्टी हो जाएँगी मानव कृतियाँ
कुकुरमुत्ते के भीतर भरी
भुरभुरी राख सरीखी साँस घोंटती
एक लपट उठ
बन जाएगी एक प्रेत की चीख़
गुँजाती नीरव शत संसृतियों के गलियारे।
वे फिर आएँगे वे, तो...
राह हमीं ने खोली है, पाँवड़े बिछाये हैं
यह मान कि जो आएगा
अवतारी होगा : एक नया
कृतयुग लाएगा फिर आएँगे
लेकिन वे तो फिर आएँगे..