Last modified on 2 अगस्त 2020, at 09:15

वे हुरियारे दिन / शिवजी श्रीवास्तव

{

मन पाँखी फिर ढूँढ रहा है
वे हुरियारे दिन

अम्मा की गुझियाँ
भाभी की
सरस ठिठोली, होली
शोर मचाती गली गली में
हुड़दंगों की टोली
कोई नर्म हथेली
हमको रंग लगा यूँ बोली
भूल न जाना रंग भरे ये
प्यारे प्यारे दिन

रूठा रूठी
झगड़े लफड़े
होली में जलते थे
फगुआ, चैता रसिया सुन सुन
सबके मन खिलते थे
जुम्मन मियाँ गुलाल लगाते
गले सभी मिलते थे
सपनों जैसे लगते हैं अब
वे उजियारे दिन

गाँव गली के छोरे छोरी
खूब धमाल मचाते
ढोल नगाड़ों की ढम ढम पर
ठुमके सभी लगाते
इतने रंग उड़ाते नभ में
इंद्रधनुष बन जाते
अल्हड़ मस्त अदाओं वाले
वे फगुआरे दिन