व्याधि विधाता की रची, दूरि करेगो सोय।
धरनी वैद न सोचिये, कर्त्ता करै सो होय॥1॥
धरनी वैदन वहिर्मुखी, जीव जियावै आन।
अपने घरके जीव सब, चले जाहिँ खरिहान॥2॥
जीव हतावै जीव लगि, सो पुनि जीवै नाहिं।
धरनी ताते वैदवा, बहे नरक-जल जाहिं॥3॥
वैद बड़ो गुरु अपनो, हृदये औषध लाव।
धरनी साँची कहतु है, व्याधि अनेक मिटाव॥4॥
व्यापित पीर शरीर में, व्याधि सो आवा गौन।
धरनी वैद विशंभरा, और मिटावै कोन॥5॥
साधु-चरण जल औषधी, राम नाम विश्वास।
व्याधि मेट सब अंग की, धरनी दास हुलास॥6॥
धरनी वैद जहाँ मिलै, दीनानाथ दयाल।
तहाँ वैदई का करै, जीवन जीव कंगाल॥7॥