मातु पिता सुत मीत सबै, तब काह न दुइ दिन टेकि धरो।
जब चोट हुताशन राज हरो, धन मींजत काहेके हाथ खरो॥
अजहूँ पकरो प्रभु की शरनी, धरनी जनि धन्धहिँ बूडि मरो।
जीवन लोहतवा-जल-बुन्द गोपाल 2 कहो॥4॥
मातु पिता सुत मीत सबै, तब काह न दुइ दिन टेकि धरो।
जब चोट हुताशन राज हरो, धन मींजत काहेके हाथ खरो॥
अजहूँ पकरो प्रभु की शरनी, धरनी जनि धन्धहिँ बूडि मरो।
जीवन लोहतवा-जल-बुन्द गोपाल 2 कहो॥4॥