आखिर वोह कौन है
जो दो कौमों के बीच
मज़हब को
कंटीन खूटों की तरह
गाड़ देता है
साँझे आँगन में
ग़ड्ढे खोदता हुआ
उसकी क्या जात है
जो घृणा को
बारूद में मिलाकर
बमों में फोड़ता है
और आदम की नस्ल को
चौराहे पे
नंगा करके
छोड़ता है
जो धर्मग्रंघों को
केवल अपने ही हित में
बयान देने वाली पोथी समझकर
नासमझी से
फार्मूले की तरह रट रहा है
और लोकपथ से
दूर हट रहा है
जिसके लिए
सदभाव,सम्मान
भाईचारा,ईमान
चिलम में गांजे की तरह
सट्टे की चीज़ें हैं
और समाज, राष्ट्र तथा मानवता
सट्टे की चीज़ें