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वो एक तुम कि सरापा बहारो-नाज़शे-गुल / नज़र लखनवी

वो एक तुम कि सरापा बहारो-नाज़शे-गुल।
वो एक मैं कि नहीं सूरत आशनाए-बहार॥

ज़मीं पै लाल-ओ-गुहर बन के आशकार हुआ।
छुपा न ख़ाक में जब हुस्ने-ख़ुदनुमाए-बहार॥

तआलुके़-गुलो-शबनम है राज़े-उलफ़त भी।
उन्हें हँसाए, जहाँ तक हमें रुलाये बहार॥