वोह जिबह करके यह कहते हैं मेरी लाश से-।
"तड़प रहा है कि मुँह देखता है तू मेरा॥
कराहने में मुझे उज़्र क्या मगर ऐ दर्द।
गला दबाती है रह-रह के आबरू मेरा॥
कहाँ किसी में यह क़ुदरत सिवाय तेग़े-निगाह।
कि हो नियाम में और काट ले गुलू मेरा॥
वोह जिबह करके यह कहते हैं मेरी लाश से-।
"तड़प रहा है कि मुँह देखता है तू मेरा॥
कराहने में मुझे उज़्र क्या मगर ऐ दर्द।
गला दबाती है रह-रह के आबरू मेरा॥
कहाँ किसी में यह क़ुदरत सिवाय तेग़े-निगाह।
कि हो नियाम में और काट ले गुलू मेरा॥