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वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का / रियाज़ ख़ैराबादी

वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का
मुँह चूम लूँ जवाब तो ये है सवाल का

सौ नाज़ से जो आए क़यामत तो कुछ नहीं
अंदाज़ और है तिरी मस्ताना चाल का

मुमकिन नहीं कि सुन के हो तुम्हें शगुफ़्तगी
पूछो न हाल तुम किसी आशुफ़्ता-हाल का

क़िस्मत मिरी वो आए मिरा दिल ख़रीदने
होता है मोल आज तो मुफ़लिस के माल का

रहना ‘रियाज़’ साए से भी उस के दूर दूर
दुश्‍मन ये आसमान है अहल-ए-कमाल का