Last modified on 22 मई 2019, at 16:18

वो बदले वक़्त के तेवर से रत्ती न डरता है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

वो बदले वक़्त के तेवर से रत्ती न डरता है
जो चुटकी में उड़ा कर दर्द, थोड़ा सब्र करता है।

बरसते फूल होठों से, नज़र से नूर झरता है
ग़ज़ल बन कर जब उनका अक्स काग़ज़ पर उतरता है।

खुशी में झूम चिड़ियों को चुगाता रोज़ है लल्ला
सबेरे चहचहाता झुंड जब छत पर उतरता है।

किसी को बरगलाकर मत करो हासिल तरफदारी
ये कच्चा रंग है प्यारे बहुत जल्दी उतरता है।

न पूछो गांव के तालाब को किसने किया गंदा
ख़रा सच बोलने में मित्र चौकीदार डरता है।

सफ़र को मुल्तवी कर दो यहीं पर रात ढलने तक
सुना ये रस्ता इक मैकदा छूकर गुज़रता है।

भले सब हों मगर ये सच है इक तेरे न होने से
भरी महफ़िल में अय 'विश्वास' सन्नाटा पसरता है।