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वो लड़कियाँ 1 / स्मिता सिन्हा

मुझे अच्छी लगती हैं
धूप में तपती
सुर्ख गुलाबी रंगत वाली
वो लड़कियाँ
जिनके गालों में पड़ते हैं
गहरे गड्ढे
जिनकी खिलखिलाहट से
छन छनकर गिरते हैं
इंद्रधनुष के सारे रंग
हमारे आस पास
मुझे अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
हाथों में हाथ डाले
घुमती हैं जनपथ पर
इधर से उधर
बेमतलब
आपस के पैसे जोड़कर
बड़े ठसक से करती हैं खरीददारी
लॉन्ग स्कर्ट,स्कार्फ,बैग,
जूतियाँ,चूड़ियाँ...
जाने क्या क्या
और फ़िर खोमचे वाले से
मूँगफली लेकर बढ़ जाती हैं
पालिका की तरफ़
मुझे अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
जो हरी घासों पर लेटकर
बेखौफ ताकती हैं आकाश को
बेपरवाह,बेख़बर सी
बस आँखें बंद कर गुनगुनाती हैं
एक रुमानी सी ग़ज़ल
मुझे अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
जो बस यूँ ही
तोड़ती चली जाती हैं
उस गुलाब की सारी पंखुड़ियाँ
जो होती हैं
मौसम की पहली बारिश में भींगी
सोंधी मिट्टी सरीखी
बारिश की नन्ही बूँदों को
पकड़ने में मशगूल
मुझे बेहद अच्छी लगती हैं
वो लड़कियाँ
जो उस फिसलते लुढ़कते
सूरज के साथ
चलती चली जाती हैं
और अपनी पीठ पीछे
छोड़े जाती हैं
एक लम्बी उदास शाम...