वो लड़कियाँ
अब चुप सी रहने लगीं हैं
एक ठहरी नदी सी
बेहद शांत और स्थिर
उनकी आँखें एक सी हैं
और मुस्कान भी एक
वो हर बार समझ जाती हैं
हर उस बात को
जो अक्सर ही
अनकही रह जाती हैं
उनके बीच
वो लड़कियाँ
अब नहीं डरतीं
किसी के डराने से
रात के अँधेरे से
छिपकलियों से
अकेलेपन से
अब वो चिल्लाती हैं,
झल्लाती हैं,रोती हैं
पहले से कहीं ज्यादा
खूब खूब ज्यादा
पर हँसती ज़रा कम हैं
वो लड़कियाँ
अब सपने नहीं देखतीं
पालती हैं दूसरों के सपनों को
अपनी आँखों में
करती हैं रोज़ एक ही सवाल
कि आखिर क्या होना था उन्हें?
क्यों और किसके लिये होना था उन्हें?
जो भी था
वो खुद सी भी कहाँ हो पायीं आज तक!
अपने ही हाथों
वे बंद कर देती हैं अपने कान
और मुक्त हो जाती हैं
अपनी ही आवाज़ से
आजकल देर तक चुपचाप
सुनती रहती हैं वो
बादलों के उमड़ने,घुमड़ने,टकराने
और बरसने की आवाज़
वो लड़कियाँ
अब धरती हुई जाती हैं
उस दिन ये भी सुना
कहीं कुछ लोग कह रहे थे
वो लड़कियाँ
अपनी माँ सी हुई जाती हैं...