इस बारिश में
मैं ताज़ा घास की हरी गंध से
भरता जाता हूँ रास्ते से गुजरते हुए
देखो तुममें से कोई या न देखो
यों डबडबाती हैं अजीब ख़ुशियाँ
एक मौसम की
गँवार आदमी के अधरों में
(रचनाकाल : 1980)
इस बारिश में
मैं ताज़ा घास की हरी गंध से
भरता जाता हूँ रास्ते से गुजरते हुए
देखो तुममें से कोई या न देखो
यों डबडबाती हैं अजीब ख़ुशियाँ
एक मौसम की
गँवार आदमी के अधरों में
(रचनाकाल : 1980)