व्यथा मौन, वाञ्छा भी मौन, प्रणय भी, घोर घृणा भी मौन- हाय, तुम्हारे नीरव इंगित में अभिप्रेत भाव है कौन? कोई मुझे सुझा दे-मर भी जाऊँ तो जाऊँ, संशय की आग बुझा दे! मुलतान जेल, 30 जनवरी, 1934