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शंकर -स्तवन / तुलसीदास/ पृष्ठ 2


शंकर -स्तवन-2

 ( छंद 151, 152)

(151)

अरध अंग अंगना, नामु जोगीसु, जोगपति।
बिषम असन, दिगबसन, नाम बिस्वेसु बिस्वगति।।

कर कपाल, सिर माल ब्याल, बिष -भूति-बिभूषन।
 नाम सुद्ध , अबिरूद्ध, अमर अनवद्य, अदूषन।।

बिकराल-भूत-बेताल-प्रिय भीम नाम, भवभयदमन।
 सब बिधि समर्थ, महिमा अकथ, तुलसिदास-संसय-समन।।

(152)

भूतनाथ भय हरन भीम भय भवन भूमिधर।
 भानुमंत भगवंत भूतिभूषन भुजंगबर।।

भब्य भावबल्लभ भवेस भव-भार-बिभंजन।
 भूरिभोग भैरव कुजोगगंजन जनरंजन।।

भारती-बदन बिष-अदन सिव ससि-पतंग-पावक-नयन।
कह तुलसिदास किन भजसि मन भद्रसदन मर्दनमयन।।