वार्तिक:
मैं अत्यन्तकर पापी हूँ। पहले लिख दिया हूँ।
' एह पापी के कवन पुण्य से भइल चहुँ-दिशि नाम।
भजन भाव के हाल न जनलीं सब से ठगलीं दाम।
बेरा पार लगा द राम॥'
आठ पहर सन्तावत मोहिके लोभ मोह मद काम।
पाकल केश नाम बिनु काया कंचन भइलन खाम।
बेरा पार लगा द राम॥