वार्तिक
शिकायत छपवा कर गली-गली में बिक्री करते हैं। लेकिन सज्जन उस पर ध्यान नहीं देते हैं। जैसे-
रहिमन बुरा न मानिये जो गँवार कहि जाय।
जस घर के नद वानते भलो बुरे वही जाय॥
सवैया
अन्ध न जानत दीपक के छवि और बहिरो नहीं राग को जानें।
मानसरोवर का सुख के का कहूँ नाहि काक सके अनुमानै।
पापी महा अधमाधम हूँ कबहूँ नहिं स्वर्ग के सुख बखाने।
तैसेहिं मूरख या जग में भकुहा उल्लूवा बदुरा के समाने॥
चौपाई
सब कर निन्दा जो नर करई, सो चमगादर हुई अवतरई॥