एक
पार्क में
कई लोग ध्यान से देख रहे हैं
सफेद तितलियों को
मुझे वह तितली बहुत पसंद है
जो खुद ही जैसे सत्य का फड़फड़ाता हुआ
कोना है कोई
सूरज के उगते ही
दौड़ती-भागती भीड़ हमारे इस खामोश ग्रह को
गतिमान बना देती है
और तब पार्क भर जाता है
लोगों से
हर आदमी के पास आठ-आठ चेहरे होते हैं
नगों-से चमचमाते
गलतियों से बचने के वास्ते
हर आदमी पास एक अदृश्य चेहरा भी होता है
जो जताता है -
'कुछ है जिसके बारे में आप बात नहीं करते!'
कुछ जो थकान के क्षणों में प्रकट होता है
और इतना तीखा है
जैसे किसी जानदार शराब का एक घूँट
उसके बाद में महसूस होने वाले
स्वाद की तरह
तालाब में हमेशा हिलती-डुलती रहती हैं मछलियाँ
सोते में भी तैरतीं वे
आस्थावान होने के लिए एक मिसाल हैं - हमेशा गतिवान
दो
अब यह दोपहर है
सलेटी समुद्री हवा धुलते हुए कपड़ों-सी
फड़फड़ाती है
उन साइकिल सवारों के ऊपर
जो चले आते हैं
एक दूसरे से चिपके हुए
एक समूह में
किनारे की खाइयों से बेखबर
मैं घिरा हुआ हूँ किताबी चरित्रों से
लेकिन
उन्हें अभिव्यक्त नहीं कर सकता
निरा अनपढ़ हूँ मैं
और
जैसी कि उम्मीद की गई मुझसे
मैंने कीमतें चुकाई हैं
और मेरे पास हर चीज की रसीद है
जमा हो चुकी हैं
पढ़ी न जा सकने वाली ऐसी कई रसीदें
- अब मैं एक पुराना पेड़ हूँ इन्हीं मुरझाई पत्तियों वाला
जो बस लटकती रहती हैं
मेरे शरीर से
धरती पर गिर नहीं पातीं
समुद्री हवाओं के तेज झोंके
इनमें सीटियाँ बजाते हैं।
तीन
सूरज के डूबते ही
दौड़ती-भागती भीड़ हमारे इस खामोश ग्रह को
गतिमान बना देती है
हम सब
सड़क के इस मंच पर खड़े हुए
कलाकार हैं जैसे
यह भरी हुई है लोगों से
किसी छोटी नाव के
डेक की तरह
हम कहाँ जा रहे हैं?
क्या वहाँ चाय के इतने कप हैं?
हम खुद को सौभाग्यशाली मान सकते हैं
कि हम समय पर पहुँच गए हैं
इस सड़क पर
क्लास्ट्रोफोबिया की पैदाइश को तो अभी
हजार साल बाकी है !
यहाँ
हर चलते हुए आदमी के पीछे
एक सलीब मँडराती है
जो हमें पकड़ना चाहती है
हमारे बीच से गुजरना
हमारे साथ आना चाहती है
कोई बदनीयत चीज
जो हमारे पीछे से हम पर झपटना
और कहना चाहती है - बूझो तो कौन?
हम लोग
ज्यादातर खुश ही दिखाई देते हैं
बाहर की धूप में
जबकि हम अपने घावों से रिसते खून के कारण
मर जाने वाले हैं
हम इस बारे में
कुछ भी नहीं जानते!
(अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य)