शक्ति की आधार देवी,
हर, भुवन का भार, देवी !
यह तुम्हारी सृष्टि कैसी
मृत्यु की मूरत बनी है,
सृजन के सब द्वार बंदी
भौंह धनुही-सी तनी है;
कोपलों से प्राण थर-थर
आँधियों-सी है हवाएं,
कुछ करो अविलम्ब ऐसा
क्षण प्रलय के बीत जाएं!
दीन-सी दुनिया खड़ी है
भय विकट; संहार, देवी !
जो तपस्वी, ऋषि, विमल-से
यातना से पददलित हैं,
काल की कैसी कलाएं
जो भयावह हैं, ललित हैं;
भूमि कम्पित, पवन कम्पित
अग्नि कम्पित, गगन कम्पित,
नील सागर यह हहरता
किस तरह से है प्रकम्पित!
हो तुम्हारी सृष्टि; लेकिन
तुम नहीं लाचार, देवी ।