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शतदल, सजल सहास / रामकुमार वर्मा

शतदल सजल सहास!

सलिल के सुखद स्वप्न साकार;
अमिट, विकसित, सस्मित सुकुमार,
विश्व के विहँसित पुलकित प्यार;
तरंगित तन के कितने पास!
शतदल सजल सहास!

जगत के हे अभिनव आभास;
सुरभि है अविरत जीवित साँस,
रुचिर छवि है, यौवन है पास;
और है जीवन का उल्लास॥
शतदल सजल सहास!

कौन हो तुम ज्योतित आकार!
पवन करता रहता परिचार,
सलिल लहरों के हाथ पसार;
माँगता है चिर मिलन-विलास॥
शतदल सजल सहास!