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शतरंज / सरस दरबारी

कितना खूबसूरत खेल,
सबकी परिधि तय-
सबकी चालें परिभाषित-
ऊँट टेढ़ा चलता है-
हाथी सीधा-
घोड़ा ढाई घर
और प्यादे की छलाँग बहुत छोटी
सिर्फ एक खाने भर की
और शातिर दिमाग इन्ही चालों से
तय करते हैं
अंजाम खेल का!
काश! यह सिर्फ एक खेल ही होता
अब तो
यह जीवन शैली बन गया है-
और जीते जागते इंसान
बन गए हैं मोहरें-
सत्ता करती है सुनिश्चित
किसे हाथी बनाना है
और किसे ऊँट या घोडा
और आम आदमी
उनकी चालों से बेखबर
उनकी बिछायी बिसात पर
उनकी शै और मात का बायस बनता जाता है!