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शब्दों के किनारे-किनारे / अभि सुवेदी / सुमन पोखरेल

रात को
कितने आँसू बह गए,
जान न पाया ।
सुबह,
नदी की सिसकियाँ सुनने के बाद,
बहते हुए मन को बाहर निकालने के लिए
शब्दों के किनारे-किनारे दौड़ता रहा मैं ।
०००