शब्द चोट करते हैं
जैसे दलित से हरिजन
और हरिजन से दलित
शब्दों के प्रतीक पुरुष होते हैं
जैसे आम्बेडकर से गाँधी
और गाँधी से आम्बेडकर
दलितों के सीने जब
छलनी होते हैं
शब्द उभरते हैं
शब्द बनते हैं धारदार
शब्द ही तो थे
जो मनुस्मृति में लिखे गये
रामराज चला गया
पर शम्बूक की चीख़ की अनुगूँज अभी बाक़ी है
जैसे दलितों की पीठ पर चोट के निशान
शब्द सिसकते नहीं बोलते हैं
चोट करते हैं
जैसे दलित से हरिजन
और हरिजन से दलित