वह शब्द एक पवित्र शब्द था
आत्मा की हथेली पर अनायास उगा
हथेली चकित उसे देखती
कितनी कीं छिपाने की कोशिशें
कितना बरजा कि
काली हवाएँ
नहीं छोड़तीं किसी को
न रात का अन्धकार
दोपहर की तरह चढ़ा ऐसा
आत्मा पर बुखार-सा
समूचे कालचक्र को बेधता
आ गया ऊपर
और देखो कैसे बैठा
समय के मुहाने पर
काली आँधियों से बेख़बर।