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शब्द और शोर / महेश उपाध्याय

हवाओं ने
फैला दिए हैं
सारे आकाश में बादल
बादलों ने टपका दी हैं बूँदें

बूँदों ने कर दिया है
सारी धरती को गीला
उछल रहे हैं
मेंढ़कों की तरह -- शब्द
गाँव से शहर तक
कहीं कुछ भी नहीं हो रहा

समस्याओं में कसे हुए दिमाग़
बिजली के खम्बों की तरह खड़े हैं
पाँवों को घड़ी की सुइयों की तरह
घुमाने में बीत रहा है समय

जेबों में डाले हुए
एक ऊन का गोला
हर हाथ बुन रहा है स्वेटर
                   (अपने लिए)

हाँ, हो रहा है एक हल्ला
कुछ शब्दों के लिए
और शब्द चीख़ रहे हैं
एक हल्ले के लिए ।