पहले दृश्य में
दिखे भागते दौड़ते
धमनियों में मोर्चा संभालते
कीटाणुओं-जीवाणुओं के विरूद्ध
श्वेत रक्त कणिकाओं की तरह
मोर्चेबन्दी करते .....
दूसरे दृश्य में
दिखे मारे काटे जाते
काले पड़ते थकते
सड़ते-गलते
होते निस्तेज सामर्थ्यहीन
अंधे गूंगे बहरे
कुरूप बेसिर बेपैर के
केचुये बनते बिना रीढ़ के ...
तीसरे दृश्य में
दिखे
शब्द से उगते हुए शब्द
रूप से बनते नये स्वरूप ...
चौथे दृश्य में
दिखे वे स्वप्न
जिसमें देखे गए
पहले दूसरे और तीसरे दृश्य .......।