शब्द नीली आस्था से
भर गए हैं ।
शक्ति गोताखोर की पाले हुए
मोतियों से बात करते हैं
वीतरागी व्योम से सम्वाद कर
जब कभी नीचे उतरते हैं
पँख में पावन परम किरणें लिए
कटखनी-सी रात को दिन
कर गए हैं ।
वाक्पटु परिवेश की दीवानगी
देखकर हैरान है ऐसी
बाँध में बँधती हुई धारा
ठहर जाती है जहाँ जैसी
मर रहा था जो अनोखापन वहीं
उदधि-धन्वन्तरि उसाँसें
धर गए हैं ।