जो अभी तक
मौन थे, वे शब्द बोलेंगे,
हर महाजन
की बही का, भेद खोलेंगे ।
पीढ़ियाँ गिरवीं फ़सल के
बीज की खातिर,
लिख रहा है भाग्य मुखिया
गाँव का शातिर !
अब न पटवारी
घरों में युद्ध बोएँगे ।
आ गई खलिहान तक
चर्चा दलालों की,
बिछ गई चौपाल में
शतरंज चालों कीं ।
अब शहर के
साण्ड, फ़सलों को न रौंदेंगे ।
कौन होली, र्इद की
ख़ुशियाँ लड़ाता है ?
औ हवेली के लिए
झुग्गी जलाता है ।
सभी नकली
वोट की दूकान तोड़ेंगे,
जो अभी तक
मौन थे, वे शब्द बोलेंगे ।