निरर्थक ध्वनि ही तो है वह
जिसे अपना अर्थ दूँगा मैं—
मेरी कहन होगी वह
कहता हूँ लेकिन जब उस को
मैं उस का शब्द होता हूँ
—वह मेरा अर्थ
मैं शब्द हूँ क्या बस
होना नहीं
और क्या होता है
होना
कविता होने के सिवा—
एक लय चुप कर देती है
अपनी ख़ामोशी में
लेती हुई मुझे ।
—
1 फ़रवरी 2010