शम्सुद्दीन तुम कहाँ गए
हिन्दुत्व के इस जंगल से
बाहर या अन्दर
यह आख़िरी युद्ध है
सब्ज़ा और तुलसी के बीच
हरे और भगवे
दोनों से रक्त सिर्फ़ लाल ही बहेगा
शम्सुद्दीन तुम नहीं होंगे
इण्डिया या हिन्दोस्ताँ या भारत की
क़यामत मनाने को
तुम्हारी बेवारिस लाश
जकड़ी हुई है जिस राजनीति के पाश में
वह लावारिस राजनीति
सियासत की रण्डीबाज़ सारंगी के साथ
दादरा का सम छू लेती है
इस बेदर्द ज़माने का ।