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शरदें काटै धान रे / कुमार संभव

शरदें काटै धान रे
धान खेत में झुकी-झुकी काटै
शरदें कचिया से धान रे।
कचिया काटी, हाथें गोछियाबै
पाही-पाही राखी के सोड़ियाबै,
गोछी नै बर्बाद हुअेॅ तनियोॅ टा
राखै ऐकरो धियान रे,
धान खेत में झुकी-झुकी काटै
शरदें कचिया से धान रे।

सोनम काटै, काटै सीतासार हो
कतरनी काटै, काटै संभा धान हो,
महकौआ काली कुमुदनी काटै
गमगम होलै मन प्राण रे,
धान खेत में झुकी-झुकी काटै
शरदें कचिया से धान रे।

लाल धान के ओढ़ी चुनरिया
छींटदार पिन्हले सुन्दर सड़िया,
आरी पर बैठी के झूमै-पझड़ै
गावी के गीत किसान रे,
धान खेत में झुकी-झुकी काटै
शरदें कचिया से धान रे।

सीसोॅ सैती केॅ आंटी अटियाबै
बोझोॅ ढुअै झट झटकी केॅ आबै,
लचकै पतरी कमरिया ऐन्होॅ
जेना चलै काम के वाण रे,
धान खेत में झुकी-झुकी काटै
शरदें कचिया से धान रे।