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शरद-खंजन फिरै / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

शरद-खंजन फिरै
गल्ला सें गल्ला मिलीकेॅ दुन्हू
की-की गलगल करै।

धानोॅ में ढुकलोॅ की मारै छै गपसप
निकली पोखरिया में गोड़ करै छपछप
कमलोॅ पर फुदकै कोय कोय्यो डरै
शरद-खंजन फिरै।

सारस केॅ दूषनें छै कारण्डव भोरे
जानी है-हंसें की पानी थपकोरै
बगुलाँ लै चुटकी-कोय कत्तो जरै
शरद-खंजन फिरै।

धोआ धोती रङ दिन राती पटोरी
बान्है छं कौनै ई जादू के डोरी
मोहिनी के मन्तर के धेनू चरै
शरद-खंजन फिरै।