Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 01:17

शरद / नंदकिशोर आचार्य

जा चुका बालापन
यौवन की दहलीज पर है शरद
नहीं पूनो, चौदस की रात
हवा में हल्की-सी ख़ुनकी
प्यार का जग रहा
जैसे पहला एहसास।