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शरद की ऋतु सौगात तुम्हारा / हरिवंश प्रभात

शरद की ऋतु सौगात तुम्हारा स्वागत है,
जाड़े की बरसात तुम्हारा स्वागत है।

कौन जगे सब रूटिन लगे हैं बे मतलब,
सोया सूरज दिन रात, तुम्हारा स्वागत है।

जिसको खोजो वही भूला-सा लगता है,
उस पर काली रात तुम्हारा स्वागत है।

दरवाज़े पर जलता है अलाव सवेरे,
याद करे पहाड़ा दाँत, तुम्हारा स्वागत है।

हम गरीब भी रहते हैं ख़ुशहाल बहुत,
कम्बल मिला ख़ैरात तुम्हारा स्वागत है।

खिड़की खुलीं है, यादों की, इरादों की,
ओस बूँद बरसात तुम्हारा स्वागत है।

कितना सोये बिन सपनों, बिन यादों के
जाने कब होगा ‘प्रभात’, तुम्हारा स्वागत है।