झाग उड़ाता चश्मा
मेरे बाल भिगो कर
दूर कहीं जा निकला है
लेकिन उसकी शोख़ी अब तक
मेरी माँग से मोती बनकर
क़तरा-क़तरा टपक रही है
झाग उड़ाता चश्मा
मेरे बाल भिगो कर
दूर कहीं जा निकला है
लेकिन उसकी शोख़ी अब तक
मेरी माँग से मोती बनकर
क़तरा-क़तरा टपक रही है