प्रिये !
उन आन्तरिक
आत्मीय क्षणों में
जब प्रकृति को
निरन्तरता और अमरता
प्रदान करने वाला
अमृत छलक रहा हो
तो तुम्हारा
प्रतिक्रिया शून्य और निष्प्राण
पडा रहना
विचलित करता है मुझे
...सोचता हूं
क्या सचमुच
तुम आधा अंग हो मेरा ?
या
शव आसन की सी
तुम्हारी मुद्रा में
आधा अधूरा ही मै
कर रहा हूं
वात्सायन की शव साधना..!