शशि रजनी से कहता है, 'प्रेयसि, बोलो क्या जाऊँ?' कहता पतंग से दीपक, 'यह ज्वाला कहो बुझाऊँ?' तुम मुझ से पूछ रहे हो-'यह प्रणय-पाश अब खोलूँ?' इस को उदारता समझूँ-या वक्ष पीट कर रो लूँ! 1935