रेशम के कीड़ों की खातिर
खड़े पेड़ शहतूत के ।
पल भर की निद्रा के भीतर
किन आँखों को लेकर झाँकें ।
पत्ती-पत्ती छिन जाएगी
रह जाएँगी नंगी शाखें ।
साक्षी हैं ये मौन दिगम्बर
माली की करतूत के ।
चिन्ता तो फिर भी बच जाती ,
लुट जाता जब सब कुछ अपना ।
आँखें सपना देखें कैसे
सपना तो होता है सपना ।
करते नहीं कामना फल की
चेले ये अवधूत के ।