मुझे आशीष देते बखत
आँसुओं के साथ
माँ के हिय से निकली प्रार्थना
हम चल पड़े
बतियाते हुए शहर की ओर
शहर पहुँचते-पहुँचते
मैं हो गया मज़दूर
और प्रार्थना हो गई कविता।
मुझे आशीष देते बखत
आँसुओं के साथ
माँ के हिय से निकली प्रार्थना
हम चल पड़े
बतियाते हुए शहर की ओर
शहर पहुँचते-पहुँचते
मैं हो गया मज़दूर
और प्रार्थना हो गई कविता।