उस भयानक बीहड़ में
मैं पाती थी अपने को बहुत असुरक्षित
मुँह बाहर निकालती थी
पर रखती अपनी जुबान पर काबू
अक्सर मैं देखती अपनी बगलें
कोई कहता चलो चलें टहलने, तो
मैं चुप हो जाती
सोचती हुई कि यह शायद
हो न हो कोई खेल हो
जो मेरे साथ खेला जा रहा है
मैं जिसे देखती हूँ
आँखें फैलाकर अपने सामने ।