आज फिर वहाँ कोई नहीं था
कुछ जाने-पहचाने चेहरे
कुछ बिलकुल अनजान
आ जाते —
तो क्या हो जाता
उजाड़ शहर था कमरे के भीतर
जहाँ वास्तविक था मैं स्वप्न में
और स्वप्न
मुझमें
वास्तविक
नहीं
था
आज फिर वहाँ कोई नहीं था
कुछ जाने-पहचाने चेहरे
कुछ बिलकुल अनजान
आ जाते —
तो क्या हो जाता
उजाड़ शहर था कमरे के भीतर
जहाँ वास्तविक था मैं स्वप्न में
और स्वप्न
मुझमें
वास्तविक
नहीं
था